Wednesday, September 26, 2018

विदेश जाने वाले भारतीयों की तादाद बढ़ी

विदेशों में जाने वाले भारतीयों की संख्या भी बढ़ी है. अगर एक स्टू़डेंट अमरीका में एडमिशन लेता है तो हज़ारों डॉलर ख़र्च करने पड़ते हैं और ज़ाहिर है रुपए को देकर ही ये डॉलर मिलते हैं.
मतलब डॉलर की मांग बढ़ेगी तो रुपए कमज़ोर होगा. यानी डॉलर महंगा होगा तो रुपए ज़्यादा देने होंगे. आरबीआई के अनुसार 2017-18 में विदेशों में पढ़ने जाने वाले भारतीयों ने 2.021 अरब डॉलर ख़र्च किए.
आरबीआई के अनुसार 2017-18 में विदेशों में घूमने पर भारतीयों ने चार अरब डॉलर ख़र्च किए. अभी रुपया कमज़ोर है इसलिए विदेशों का सैर और महंगा हो गया है. सरकार का कहना है कि विदेशों से ग़ैरज़रूरी आयात को कम करना चाहिए ताकि डॉलर की मांग कम की जा सके. में इंदिरा गांधी की सरकार ने डॉलर की तुलना में रुपए में 4.76 से 7.50 तक का अवमूल्यन किया था. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने कई एजेंसियों के दबाव में ऐसा किया था ताकि रुपए और डॉलर का रेट स्थिर रहे. यह अवमूल्यन 57.5 फ़ीसदी का था. सूखे और पाकिस्तान-चीन से युद्ध के बाद उपजे संकट के कारण यह इंदिरा गांधी ने यह फ़ैसला किया था.
1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने डॉलर की तुलना में रुपए का 18.5 फ़ीसदी से 25.95 फ़ीसदी तक अवमूल्यन किया था. ऐसा विदेशी मुद्रा के संकट से उबरने के लिए किया गया था. इसके बाद रुपए में गिरावट किसी भी सरकार में नहीं थमी. वो चाहे अटल बिहारी वाजपेयी पीएम रहे हों या अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह. और अब मज़बूत मोदी सरकार में भी यह सिलसिला थम नहीं रहा.
मालदीव की पहचान दुनिया भर में एक ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में है. लेकिन हाल के वर्षों में इस देश की अहमियत भारत और चीन के लिए रणनीतिक रूप से बढ़ी है.
हिन्द महासागर में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई देशों में मौजूदगी बढ़ा रहा है तो दूसरी तरफ़ भारत चीन को रोकने के लिए चाहता है कि वो इन देशों में अपनी मौजूदगी को पुख्ता करे.
चीन वैश्विक व्यापार और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान के ज़रिए इन देशों में तेज़ी से अपना पांव जमा रहा है.
1200 द्वीपों वाला 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर का यह देश समुद्री जहाजों का महत्वपूर्ण मार्ग है. भारत और चीन दोनों चाहते हैं कि उनकी नौसैनिक रणनीति के दायरे में यह इलाक़ा रहे.
भारत पिछले कुछ सालों से मालदीव से दूर होता गया. इसकी वजह ये रही कि अब्दुल्ला यामीन की सरकार को चीन ज़्यादा रास आया और उन्होंने भारत से साथ बेरुख़ी दिखाई.
रविवार को हुए चुनाव में अब्दुल्ला यामीन को हार मिली और विपक्ष के साझे उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को जीत मिली. सोलिह को 58 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट मिले हैं. भारत ने सोलिह की जीत का तत्काल स्वागत किया और कहा कि यह लोकतंत्र की जीत है.
क़रीब चार लाख की आबादी वाले इस देश में सालों से भारत का प्रभाव रहा है. मालदीव में चीन की दिलचस्पी हाल के वर्षों में बढ़ी है.
मालदीव को चीन अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड में एक अहम रूट के तौर पर देख रहा है.
चीन की बढ़ती दिलचस्पी से भारत का असहज होना लाजिमी था. भारत को लगता है कि चीन मालदीव में कोई निर्माण कार्य करता है तो उसके लिए यह सामरिक रूप से झटका होगा.
वैश्विक संबंधों में यह आम राय बन रही है कि जहां-जहां चीन होगा वहां-वहां भारत मज़बूत नहीं रह सकता है. मालदीव से लक्षद्वीप की दूरी महज 1200 किलोमीटर है. ऐसे में भारत नहीं चाहता है कि चीनी पड़ोसी देशों के ज़रिए और क़रीब पहुंचे.
यामीन ने चीन के पैसों से मालदीव में निर्माण कार्य शुरू किया तो भारत का यह डर और बढ़ा. यामीन ने चीन से कई परियोजनाओं के लिए समझौते किए हैं, जिनमें राजधानी माले में एक एयरपोर्ट भी शामिल है.
यामीन के कार्यकाल में चीन ने मालदीव में भारी निवेश किया है. सेंटर फोर ग्लोबल डिवेलपमेंट के अनुसार इसमें 83 करोड़ डॉलर का एयरपोर्ट भी शामिल है. इसके साथ ही 2 किलोमीटर का एक ब्रिज़ भी है जो एयरपोर्ट द्वीप को राजधानी माले से जोड़ेगा.
चीन मालदीव में 25 मंजिला अपार्टमेंट और हॉस्पिटल भी बना रहा है. साउथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल तीन लाख 6 हज़ार चीनी पर्यटक मालदीव गए. मालदीव में आने वाले कुल पर्यटकों का यह 21 फ़ीसदी है. पिछले साल अगस्त महीने में जब चीनी नौसैनिक जहाज माले पहुंचे तो भारत की चिंता और बढ़ गई थी.

Friday, September 7, 2018

समलैंगिक संबंधों पर कोर्ट में क्या रहा मोदी सरकार का रुख़?

फ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान का अमरीकी सेना की मदद करना हक्क़ानी का रास नहीं आया और उनके आपसी संबंधों में खटास आ गई. इसी दौरान हक्कानी नेटवर्क ने दक्षिण पूर्व अफ़ग़ानिस्तान में अपनी जड़ें गहरी की और यहीं से अभियान चलाया.
अमरीका ने कई आत्मघाती हमलों और अपहरणों के लिए हक्कानी को ज़िम्मेदार बताया. जब अमरीका ने यहां ड्रोन और हवाई हमले किए तो तालिबान और हक्कानी लड़ाकों ने भागकर पाकिस्तान के वज़ीरिस्तान में पनाह ली और यहां से गतिविधियां चलाईं.
पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार सबाहत ज़कारिया बताती हैं, "हक्कानी नेटवर्क का पाकिस्तान के वज़ीरिस्तान इलाके में बेस था. वे अफ़ग़ानिस्तान में जाकर भी ऑपरेट करते रहे हैं. इसे सॉफ़्ट बॉर्डर कहा जा सकता है और यहां से इधर-उधर आ जाकर ऑपरेशन चलाना संभव है और उस समय ज़्यादा संभव था."
"हक्क़ानी पावर ब्रोकर थे, माफ़िया की तरह. अल क़ायदा और ओसामा के साथ उनके अलग रिश्ते थे और तालिबान के साथ अलग थे. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में उनका काफी प्रभाव था."
हक्कानी नेटवर्क ने अपनी सुविधा के हिसाब से रिश्ते बनाए और तोड़े भी. तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान के साथ भी इसकी क़रीबी रही. अमरीका की कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान से भागे लड़ाकों ने वज़ीरिस्तान की ओर आना शुरू किया. यहां उनका इतना प्रभाव हो गया कि उनके साथ संघर्ष में पाकिस्तान के 700 जवानों की मौत हो गई. इसके बाद हालात ऐसे हो गए 2006 तक पाकिस्तानी अधिकारी वज़ीरिस्तान में क़दम तक नहीं रख सकते थे. इससे हक्क़ानी और अन्य चरमपंथी समूहों को यहां पर और मज़बूत होने में मदद मिली.
मगर पाकिस्तान पर हक्कानी के खिलाफ़ नरम रवैया रखने के आरोप लगते रहे हैं, हालांकि पाकिस्तान इनसे इनकार करता है. 2011 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने भी पाकिस्तानी एजेंसियों के चरमपंथियों से रिश्ते होने की बात कही थी.
उन्होंने कहा था, "इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों के ऐसे लोगों से रिश्ते हैं जो हमारे लिए समस्या हैं. मैंने सार्वजनिक तौर पर भी यह कहा है और पाकिस्तानी अधिकारियों से भी. उन्हें लगता है कि स्वतंत्र अफगानिस्तान उनकी सुरक्षा के लिए खतरा होगा क्योंकि वह भारत के क़रीब आ सकता है जिसे वो अपना दुश्मन समझता है."
अमरीका ने साल 2012 में ही हक्कानी नेटवर्क को प्रतिबंधित कर दिया था मगर पाकिस्तान ने 2014 में पेशावर में स्कूल पर हुए चरमपंथी हमले के बाद 2015 में लाए गए नैशनल ऐक्शन प्लान के तहत इस पर बैन लगाया.
मगर हाल ही में फिर अमरीका ने यह कहते हुए पाकिस्तान को चरमपंथी समूहों के खिलाफ लड़ने के लिए दी जाने वाली मदद रोक दी कि वह इस दिशा में सही से काम नहीं कर रहा.
अफ़गानिस्तान में भारत के राजदूत रह चुके विवेक काटजू बताते हैं, "जो अमरीका कहता है वो सही है. पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क और तालिबान का इस्तेमाल करता रहा है. हक्कानी उसका इंस्ट्रूमेंट है. हक्कानी नेटवर्क ने भारत के दूतावास पर दो बार हमला किया था. यह कहना ग़लत है कि हक्कानी नेटवर्क और तालिबान पाकिस्तान के इशारों पर नहीं चलते हैं."
एक समय सोवियत संघ के आक्रमण के ख़िलाफ़ अफ़ग़ान संघर्ष के प्रतीक के तौर पर पहचाने जाने वाले जलालुद्दीन हक्कानी का अफ़ग़ानिस्तान में एक दशक के ख़ून ख़राबे को लेकर भी ज़िक्र होता है. मगर जानकार कहते हैं कि उनकी मौत का हक्कानी नेटवर्क पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि कई साल पहले ही वह अपने बेटे सिराजुद्दीन को जिम्मेदारी सौंप चुके थे.
आज सिराजुद्दीन अफ़गान तालिबान के शीर्ष नेताओं में से एक हैं और अफ़गान सरकार, अमरीका के सहयोगियों और भारत का मानना है कि वे अभी भी अफगानिस्तान की शांति और स्थिरता के लिए ख़तरा बने हुए हैं.
देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है. इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर सुनवाई की.
धारा 377 को पहली बार कोर्ट में 1994 में चुनौती दी गई थी. 24 साल और कई अपीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने अंतिम फ़ैसला दिया है.
लेकिन इस बीच ये जानना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर अलग-अलग सरकारों का रुख़ क्या रहा है. सबसे पहले नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार की बात.
सरकार का रुख़ देखकर साफ़ पता चलता है कि इस मुद्दे का भार वो अपने कंधों पर न रखकर कोर्ट पर ही डालना चाहती थी. इसी साल जुलाई में केंद्र सरकार ने सेक्शन 377 का भविष्य तय करने का ज़िम्मा सुप्रीम कोर्ट पर ही डाला था.
और सर्वोच्च अदालत ने तभी मज़बूत संकेत दे दिए थे कि वो सेक्शन 377 के ख़िलाफ़ जाएगी जो समलैंगिकता को अपराध बताती है.
इससे पहले सरकार ने अदालत में दाख़िल हलफ़नामे में सेक्शन 377 पर फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए 'अदालत के विवेक' की बात कही थी.
इसमें कहा गया था, ''अदालत को इस पर फ़ैसला लेना चाहिए, इसका निर्णय अदालत को करने दीजिए.''
तभी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसकी मंशा ये फ़ैसला सुनाने की है कि अगर दो बालिग लोग अपनी सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाना चाहते हैं तो उन्हें इसकी इजाज़त होनी चाहिए. हालांकि, ये जिरह पर निर्भर करेगा.
इससे पहले समलैंगिकता को लेकर भाजपा कुछ भी खुले तौर पर कहने या अपनी राय ज़ाहिर करने को लेकर बचती रही. हालांकि, भाजपा के मातृ संगठन माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने साल 2016 में अपना रुख़ साफ़ कर सभी को चौंका दिया था.
मार्च 2016 में आरएसएस के संयुक्त महासचिव दतात्रेय होसाबले ने ट्वीट किया था, ''समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है, लेकिन हमारे समाज में ये सामाजिक रूप से अनैतिक काम है. ऐसे लोगों को सज़ा देने की ज़रूरत नहीं है बल्कि इसे मनोवैज्ञानिक मामला मानिए.''
हालांकि, समलैंगिकों की शादी पर संघ ने दो टूक कहा था. उन्होंने लिखा था, ''गे मैरिज असल में समलैंगिकता को संस्थानीकरण देने जैसा है इसलिए इस पर पाबंदी रहनी चाहिए.''
किसी भी क़ानून के प्रावधान का बचाव करने की तैयारी में रहने वाली सरकार ने इस मुद्दे पर कई बार अलटी-पलटी मारी.
दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान जब सेक्शन 377 की वैधता पर सवाल उठाया गया था तब यूपीए सरकार ने इस प्रावधान का काफ़ी बचाव किया था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया.

Wednesday, September 5, 2018

世界最新环境资讯

本周匈牙利铝厂有毒废水泄露致4人死亡,120受伤,刑事调查已正式展开。欧盟和环境保护组织警告,本次灾难可能会对多瑙河沿河国家造成长远影响。这些具腐蚀性的红色有毒洪流因一间铝厂水库决堤而外泄。

BBC报道,今年尼日利亚因铅中毒致死的儿童达400名,比此前报道的数目增了一倍。联合国小组正在调查赞法拉州的中毒事件,这是由于在受到铅污染的地区进行非法采掘金矿造成的。

11个非洲国家通过了追查矿物产地的认证制度,作为遏制叛乱集团在刚果民主共和国的一项措施,据法新社消息。刚果民主共和国东部地区有丰富的矿产资源,特别是制造电子设备消费品所需的元素。该地区的临时开采禁令预计会在月底解除,路透社报道。

路透社援引孟加拉国最大的移动电话运营商 的话,报道该公司与三间太阳能电力公司签署了运用太阳能运行基站的交易。

白宫屋顶将在明年年初安装太阳能电池板,《卫报》报道。此电池板结合了太阳热能和光电效应,将用于产生热水和可再生电能——此举由350.org促成,其创办人之一为比尔·麦克基本。

美联社报道,美国土地管理局首次批准加州联邦土地上进行两个大型太阳能设施的建设项目。

海洋生物普查项目组宣布其十年工作成果,超过一百万种物种以深海为家,其中只有不到四分之一在科学文献中有所描述,《卫报》说。

而在在另一项研究中,2009年在大湄公河地区发现了145种新物种,法新社消息。法新社还报道了在巴布亚新几内亚的太平洋岛屿上发现了200种新物种。

法新社报道,一种新系统将启动,该系统能使科学家运用 (美国航空航天局)卫星发送的图像监测喜马拉雅山气候变化的影响。“第三极”地区的图像将能向科学家、政府和救援机构发出洪水及其他灾害警告,此外还有助于气候变化的研究。

围绕全球变暖设计的一个以冰为主题的水上公园已在阿联酋开业,据《海湾时报》报道。李奥·希克曼在《卫报》环境博客上提到,这个沙漠国家是拥有世界最高人均碳足迹的国家之一,某程度来说,还通过该地区的化石燃料而致富,而如今则建造了这个旅游景点,把全球最紧迫的环境问题转化成玩乐设施。

美联社消息,本周匈牙利铝厂有毒废水泄露致4人死亡,120受伤,刑事调查已正式展开。欧盟和环境保护组织警告,本次灾难可能会对多瑙河沿河国家造成长远影响。这些具腐蚀性的红色有毒洪流因一间铝厂水库决堤而外泄。

BBC报道,今年尼日利亚因铅中毒致死的儿童达400名,比此前报道的数目增了一倍。联合国小组正在调查赞法拉州的中毒事件,这是由于在受到铅污染的地区进行非法采掘金矿造成的。

11个非洲国家通过了追查矿物产地的认证制度,作为遏制叛乱集团在刚果民主共和国的一项措施,据法新社消息。刚果民主共和国东部地区有丰富的矿产资源,特别是制造电子设备消费品所需的元素。该地区的临时开采禁令预计会在月底解除,路透社报道。

路透社援引孟加拉国最大的移动电话运营商 的话,报道该公司与三间太阳能电力公司签署了运用太阳能运行基站的交易。

白宫屋顶将在明年年初安装太阳能电池板,《卫报》报道。此电池板结合了太阳热能和光电效应,将用于产生热水和可再生电能——此举由350.org促成,其创办人之一为比尔·麦克基本。

美联社报道,美国土地管理局首次批准加州联邦土地上进行两个大型太阳能设施的建设项目。

海洋生物普查项目组宣布其十年工作成果,超过一百万种物种以深海为家,其中只有不到四分之一在科学文献中有所描述,《卫报》说。

而在在另一项研究中,2009年在大湄公河地区发现了145种新物种,法新社消息。法新社还报道了在巴布亚新几内亚的太平洋岛屿上发现了200种新物种。

法新社报道,一种新系统将启动,该系统能使科学家运用 (美国航空航天局)卫星发送的图像监测喜马拉雅山气候变化的影响。“第三极”地区的图像将能向科学家、政府和救援机构发出洪水及其他灾害警告,此外还有助于气候变化的研究。

围绕全球变暖设计的一个以冰为主题的水上公园已在阿联酋开业,据《海湾时报》报道。李奥·希克曼在《卫报》环境博客上提到,这个沙漠国家是拥有世界最高人均碳足迹的国家之一,某程度来说,还通过该地区的化石燃料而致富,而如今则建造了这个旅游景点,把全球最紧迫的环境问题转化成玩乐设施。

Saturday, September 1, 2018

1.7万亿元空气污染治理计划能否还北京一个晴空?

北京不断恶化的空气质量已经引起公愤。当局不得不直面这一严峻的现实问题。中央不断着力于寻求长久的解决之道,并且即将出台重大举措。7月24日,有关方面初步披露了政府行动计划的一些细节内容。《大气污染防治行动计划》(2013-17)是过去两年内颁布的第二部污染治理规划。预计中央将为此投入共计1.7万亿元(2770亿美元)。《行动计划》的主要目标就是要在2017年将华北地区,特别是京津冀地区的空气污染物排放在2012年的基础上降低25%。虽然该计划全文最早也要在八月初出台,但是,披露的细节内容已经引发了人们的评论和猜测。就这些细节内容来看,人们是否有理由感到乐观。针对这一问题,中外对话对业界、学界的一些知名专家进行了采访。

安雪峰,环境及法律问题顾问,现居北京

目标高远,投入巨大

北京市副市长上周宣布,未来五年,北京市要在2012年水平的基础上将PM2.5浓度降低25%。然而,从官方公布的数据来看,过去十年进步缓慢。与之相比,新的目标尽管订得很高,但却难以实现。

据官方报道,过去十年,北京的可吸入颗粒物浓度(PM10)仅下降了23%左右。过去五年仅下降了11%左右。(2003年PM10年平均浓度值为0.141毫克/立方米, 2008年0.122毫克/立方米, 2012年 0.109毫克/立方米.) 米然而,对于监测地点变化所导致的数据的显著降低,官方报道并未给出解释。

更糟的是,北京今年的空气污染情况愈加严重。美国使馆的数据显示,今年头六个月,北京的可入肺颗粒物浓度(PM2.5)要比去年高出约25%。

中央近期出台计划,未来五年将投入1.7万亿元(2770亿美元)用于污染治理。《中国日报》称其是“更为严格的空气污染治理规划”。可是,尽管如此,目前还看不出中央的计划有何严格之处。北京,乃至全国严峻的空气污染状况已经对人民的健康造成了严重的影响,经济损失达数万亿元。因此,绝对有必要对污染治理相关技术进行大规模的投入。然而,计划投入的资金将会如何使用、资金使用效果的评估,目前还不清楚;也还没看到中国环保行政部门和司法部门的执法手段是否在该规划里加以强调;更还没看到政府官员业绩考核和空气污染治理效果相挂钩的责任机制。

近期公布的环境目标及污染治理投资计划或许有助于改善空气质量。然而,强化落实,以及公众的积极参与和监督都将有助于保障空气质量的改善。

吴昌华,气候集团中国区总裁、环境与发展政策分析师

中国目前正采取措施解决严重的空气污染问题,特别是华北地区的空气污染。我很高兴看到中央出台严厉措施,尤其是制订了污染控制目标及1.7万亿元的治理投入计划。虽然这些目标主要是为了解决京津冀地区的空气污染问题。但是,我相信,其他地区也会很快加入进来。空气污染不再是华北地区独自面对的挑战。对于这个世界上人口最多的国家而言,其大部分面积已经被空气污染所笼罩。

应更多关注以下几个问题。

1)在这些既定目标前提下,我们必须搞清楚实现目标需要采取哪些重大举措。也许首先需要解决的就是燃煤消耗问题,不仅要减少燃煤消耗,关键是要用清洁能源来替代燃煤。天然气、可再生能源、交通运输电气化、清洁燃煤等将会极大地丰富能源的供应。而在需求端,工业、建筑、交通运输等行业应最大限度地提高能源效率,应参照欧盟最严格的标准来颁布最高的燃料标准。

2)污染物逸散也是一个问题。如果只是在一个地区采取严厉措施,那么一些重型工业搬到其他“污染避难所”去就一点也不奇怪了。为了在2020年之前赶上全国发展目标,实现GDP总量及人均GDP再次双翻番,中西部地区目前正处在一个经济腾飞的关键时刻。京津冀地区目前采取的措施将会自然而然地给中西部地区带来重大影响。因此,在设计、落实治理措施时必须着眼全局。这样才能有效解决空气污染,防止污染物逸散。

3)中国绝大部分的研发力量和能力都恰好集中在京津冀地区。如果能够很好地加以利用,这一地区将成为解决中国环境问题、特别是当前空气污染问题的技术中心。这一地区作为政治、经济、工业、金融的中心,网聚了大量的资源,从而也赋予了它作为领头羊的得天独厚的条件。1.7万亿元的投入,如果使用得当,可以使清洁技术得到史无前例的应用,并在中国掀起以此为特征的新一轮地区性清洁革命。这可是一个不能错失的良机。

4)应在该地区采用最高级别的能效标准,覆盖领域应包括建筑、交通、消费品等。应尽可能地抬高市场准入门槛。绿色建筑规范、 照明、电动汽车、可再生能源、清洁燃煤发电等都应成为这一地区清洁革命的一部分。

政府即将出台迄今最为严格的政策目标,这也为商界带来了巨大的机遇。明确的政策导向和政策目标将有望引导投资走向。而一些在国内外具有领先地位的产业又恰好分布在这一地区。如果能够很好地抓住机遇,这一地区的清洁革命将会成为推动中国绿色增长最强大的动力来源。

清洁革命能否成功取决于能效产品和服务的市场需求。消费者的认知及购买意愿成为减排目标实现与否的关键因素。我希望政府、商界、民间团体能够加强合作,最大限度地刺激市场需求,推动清洁革命。

徐安琪,耶鲁大学博士后研究助理,
耶鲁环境法律与政策中心环境绩效评估项目负责人

“今年一系列的极端空气污染事件后,环保部发布了新一期空气污染应对计划。据《中国日报》上的消息称,该计划已于上月通过了国务院的审批,中央政府为此将投入总计1.7万亿元人民币(折合约美元2770亿美元),与此相比,美国1990年为实施《清洁空气法案修正案》共计花费了850亿美元。

《行动计划》毫无意外的将PM2.5列为重点治理对象,设定了更严格标准,以期在2017年实现全国主要城市及地区的PM2.5指数较2012年下降25%。实际上,北京这样的大城市,以2011年年均PM10达到每立方米124微克为例,即便下降了25%仍远高于世界卫生组织的推荐标准。但从另一方面来说,《行动计划》无疑是领导高层发出的强烈信号,显示了中央政府将优先治理空气污染问题。

另一个积极的迹象是在中国许多城市已经对其2017年PM2.5减排目标进行了调整和更新,且达到了世卫组织提出的中期目标。《行动计划》出台后,这些城市是否会进一步修订其目标仍有待观察。今年早些时候,环保部还敦促113个重点环保城市于10月发布其PM2.5数据,而不是原定的年底发布。”