Wednesday, September 26, 2018

विदेश जाने वाले भारतीयों की तादाद बढ़ी

विदेशों में जाने वाले भारतीयों की संख्या भी बढ़ी है. अगर एक स्टू़डेंट अमरीका में एडमिशन लेता है तो हज़ारों डॉलर ख़र्च करने पड़ते हैं और ज़ाहिर है रुपए को देकर ही ये डॉलर मिलते हैं.
मतलब डॉलर की मांग बढ़ेगी तो रुपए कमज़ोर होगा. यानी डॉलर महंगा होगा तो रुपए ज़्यादा देने होंगे. आरबीआई के अनुसार 2017-18 में विदेशों में पढ़ने जाने वाले भारतीयों ने 2.021 अरब डॉलर ख़र्च किए.
आरबीआई के अनुसार 2017-18 में विदेशों में घूमने पर भारतीयों ने चार अरब डॉलर ख़र्च किए. अभी रुपया कमज़ोर है इसलिए विदेशों का सैर और महंगा हो गया है. सरकार का कहना है कि विदेशों से ग़ैरज़रूरी आयात को कम करना चाहिए ताकि डॉलर की मांग कम की जा सके. में इंदिरा गांधी की सरकार ने डॉलर की तुलना में रुपए में 4.76 से 7.50 तक का अवमूल्यन किया था. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने कई एजेंसियों के दबाव में ऐसा किया था ताकि रुपए और डॉलर का रेट स्थिर रहे. यह अवमूल्यन 57.5 फ़ीसदी का था. सूखे और पाकिस्तान-चीन से युद्ध के बाद उपजे संकट के कारण यह इंदिरा गांधी ने यह फ़ैसला किया था.
1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने डॉलर की तुलना में रुपए का 18.5 फ़ीसदी से 25.95 फ़ीसदी तक अवमूल्यन किया था. ऐसा विदेशी मुद्रा के संकट से उबरने के लिए किया गया था. इसके बाद रुपए में गिरावट किसी भी सरकार में नहीं थमी. वो चाहे अटल बिहारी वाजपेयी पीएम रहे हों या अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह. और अब मज़बूत मोदी सरकार में भी यह सिलसिला थम नहीं रहा.
मालदीव की पहचान दुनिया भर में एक ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में है. लेकिन हाल के वर्षों में इस देश की अहमियत भारत और चीन के लिए रणनीतिक रूप से बढ़ी है.
हिन्द महासागर में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई देशों में मौजूदगी बढ़ा रहा है तो दूसरी तरफ़ भारत चीन को रोकने के लिए चाहता है कि वो इन देशों में अपनी मौजूदगी को पुख्ता करे.
चीन वैश्विक व्यापार और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान के ज़रिए इन देशों में तेज़ी से अपना पांव जमा रहा है.
1200 द्वीपों वाला 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर का यह देश समुद्री जहाजों का महत्वपूर्ण मार्ग है. भारत और चीन दोनों चाहते हैं कि उनकी नौसैनिक रणनीति के दायरे में यह इलाक़ा रहे.
भारत पिछले कुछ सालों से मालदीव से दूर होता गया. इसकी वजह ये रही कि अब्दुल्ला यामीन की सरकार को चीन ज़्यादा रास आया और उन्होंने भारत से साथ बेरुख़ी दिखाई.
रविवार को हुए चुनाव में अब्दुल्ला यामीन को हार मिली और विपक्ष के साझे उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को जीत मिली. सोलिह को 58 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट मिले हैं. भारत ने सोलिह की जीत का तत्काल स्वागत किया और कहा कि यह लोकतंत्र की जीत है.
क़रीब चार लाख की आबादी वाले इस देश में सालों से भारत का प्रभाव रहा है. मालदीव में चीन की दिलचस्पी हाल के वर्षों में बढ़ी है.
मालदीव को चीन अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड में एक अहम रूट के तौर पर देख रहा है.
चीन की बढ़ती दिलचस्पी से भारत का असहज होना लाजिमी था. भारत को लगता है कि चीन मालदीव में कोई निर्माण कार्य करता है तो उसके लिए यह सामरिक रूप से झटका होगा.
वैश्विक संबंधों में यह आम राय बन रही है कि जहां-जहां चीन होगा वहां-वहां भारत मज़बूत नहीं रह सकता है. मालदीव से लक्षद्वीप की दूरी महज 1200 किलोमीटर है. ऐसे में भारत नहीं चाहता है कि चीनी पड़ोसी देशों के ज़रिए और क़रीब पहुंचे.
यामीन ने चीन के पैसों से मालदीव में निर्माण कार्य शुरू किया तो भारत का यह डर और बढ़ा. यामीन ने चीन से कई परियोजनाओं के लिए समझौते किए हैं, जिनमें राजधानी माले में एक एयरपोर्ट भी शामिल है.
यामीन के कार्यकाल में चीन ने मालदीव में भारी निवेश किया है. सेंटर फोर ग्लोबल डिवेलपमेंट के अनुसार इसमें 83 करोड़ डॉलर का एयरपोर्ट भी शामिल है. इसके साथ ही 2 किलोमीटर का एक ब्रिज़ भी है जो एयरपोर्ट द्वीप को राजधानी माले से जोड़ेगा.
चीन मालदीव में 25 मंजिला अपार्टमेंट और हॉस्पिटल भी बना रहा है. साउथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल तीन लाख 6 हज़ार चीनी पर्यटक मालदीव गए. मालदीव में आने वाले कुल पर्यटकों का यह 21 फ़ीसदी है. पिछले साल अगस्त महीने में जब चीनी नौसैनिक जहाज माले पहुंचे तो भारत की चिंता और बढ़ गई थी.

No comments:

Post a Comment